
राजनीति अब भाषणों से नहीं, पोस्टरों से होती है। और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ इसकी प्रयोगशाला बन चुकी है। ताज़ा मामला यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और समाजवादी पार्टी के बीच छिड़े पोस्टर वॉर का है, जिसमें अब “नामजवादी DNA रिपोर्ट” ने भी एंट्री ले ली है।
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नामजवादी DNA रिपोर्ट: अब पोस्टर बताएगा नीयत!
नागरिक सुरक्षा परिषद (जो शायद ट्विटर स्पेस पर एक्टिव ज़्यादा है, जमीन पर कम) की ओर से लखनऊ के विभिन्न चौराहों पर बड़े-बड़े रंगीन पोस्टर टांगे गए हैं। इन पर लिखा गया है:
“वर्ग विशेष का तुष्टीकरण, गुंडागर्दी, गाली-गलौज — नामजवादियों के डीएनए की आ गई रिपोर्ट! आपने प्रदेश का कर दिया उपकार, ब्रजेश पाठक जी बहुत-बहुत आभार।”
समर्थन में फूल बरसाने के बजाय अब पोस्टर चिपकाए जाते हैं। ब्रजेश पाठक को मिले इस ‘पोस्टर प्रेम’ ने सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी है — क्या अब वफादारी का नया पैमाना पोस्टर है?
‘जेन-जेड’ पोस्टर पॉलिटिक्स: अखिलेश यादव बनाम ब्राह्मण सम्मान
इससे पहले भाजपा युवा मोर्चा ने भी कमाल का पोस्टर पेश किया था। एक तरफ अखिलेश यादव की तस्वीर और उस पर लिखा:
“अखिलेश यादव को भगाना है, ब्राह्मणों का सम्मान बचाना है”
और दूसरी तरफ डिप्टी सीएम की तस्वीर के साथ punchline:
“ब्राह्मण ब्रजेश पाठक जी के सम्मान में, युवा मोर्चा मैदान में”
राजनीतिक मार्केटिंग टीम को यहां से सीखना चाहिए—कंटेंट क्रिएशन, Copywriting, Target Audience Segmentation सब एक पोस्टर में।
सियासी ब्रह्मास्त्र: पोस्टर
सवाल अब यह है कि क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति पोस्टरगिरी से आगे भी कोई एजेंडा रखती है? या फिर 2024 के बाद अब 2025 में भी नारा बनाम नजारा ही चुनावी मुद्दा रहेगा।
रूबी अरुण ने बताया,
“अगर अगले महीने तक कुछ नहीं बदला, तो हो सकता है कि पोस्टर लगाकर ही बजट पास करवा लिया जाए।”
सड़कें अब ट्रैफिक से नहीं, राजनीतिक पोस्टरों से जाम हो रही हैं। कोई ब्राह्मण कार्ड खेल रहा है, कोई DNA रिपोर्ट दिखा रहा है। और जनता? वह तय कर रही है कि अगला पोस्टर कौन लगाएगा—सपाई या भाजपाई?